शोध कार्य (research) में क्‍या नहीं करें?

अगर आप एक शोध छात्र हैं और यह जानना चाहते हैं कि research में क्‍या-क्‍या नहीं करना चाहिए तो यह blog सिर्फ आपके लिए है।

आम तौर पर research में क्‍या करें? ऐसे research करें। साहित्‍य सामग्री संग्रह (data collection) ऐसे करें। ऐसे शोध प्रश्‍न का चयन करें। शोध उद्देश्‍य को ऐसे निर्धारित करें। अध्‍याय ऐसे लिखें। मुख्‍य शब्‍द (keywords) ऐसे चयन करें आदि हजारों विषयों पर लाखों पुस्‍तकें लिखी गई हैं। परन्‍तु research में क्‍या न करें? इस विषय पर बहुत ही कम लिखा गया है। बहुत ही कम बताया गया है। इस blog में, मैं यह बता रहा हूँ कि research में क्‍या न करें।

अब आप यह सवाल पुछ सकते हैं कि इन नहीं करने वाले बिन्‍दुओं का पालन करने पर कुछ लाभ भी होता है या ऐसे ही इन्‍हें पालन नहीं करना चाहिए?

तो इसका जबाब है कि नहीं करने वाली बातों को यदि नहीं करते हैं तो आप अपनी शोध कार्य की गुणवत्ता को बढ़ाते हैं। अपने पाठक को सही-सही जानकारी देते हैं। अपनी छवि पाठकों के नजर में गंभीर विद्वान की गढ़ते हैं। इसके साथ-साथ, आपके शोध कार्य को कोई भी नैतिक मानदंड से भी गलत नहीं दिखा सकता है।

नहीं करने वाले कार्यों की सूची

साहित्‍य समीक्षा को नजरअंदाज न करें।।  Don’t ignore Literature Review

एक नई शोध करने के लिए पुराने शोध कार्यों की सम्‍पूर्ण जानकारी होनी ही चाहिए। इसके लिए हमें साहित्‍य समीक्षा करनी पड़ती है। किसी सिद्धांत की कमी या सीमा तभी जानी जा सकती है जब उसकी पूर्ण जानकारी हो और उस पर गंभीरता से विचार किया जाए। किस विषय कि किस बिन्‍दू पर शोध कार्य कम हुआ है या पूर्व शोध कार्य करने में गलत तरीके का सहारा लिया गया है। इस प्रकार की तमाम बातों को हम साहित्‍य समीक्षा के द्वारा ही जानते हैं।

अत: साहित्‍य समीक्षा को नजर अंदाज नहीं करनी चाहिए।

साहित्यिक चोरी न करें।। Don’t indulge in Plagiarism

किसी के विचार (concept), शब्‍द (words) और तस्‍वीर (pics) को अपनी कार्य जैसे कि शोध प्रपत्र (research paper), लेख (article) या पुस्‍तक में प्रयोग करना और उस स्रोत (source) एवं विद्वान का उल्‍लेख नहीं करना ही साहित्यिक चोरी (plagiarism) कहलाती है। ऐसा करना शोध के क्षेत्र में या सम्‍पूर्ण शिक्षा के क्षेत्र में अपराध माना जाता है। इसके लिए कई प्रकार के दंड का भी विधान किया गया है। आपके शोध प्रपत्र को शोध पत्रिका (research journl) से हटाया जा सकता है। आपको विभाग से निकाला (expelled) जा सकता है या कुछ दिन के लिए हटाया (suspend) जा सकता है। अगर आप एक विद्यार्थी हैं तो अंक कम किया जा सकता है या अगली कक्षा में जाने से रोका जा सकता है आदि अनेक प्रकार की दंड हैं।

ऐसा करने पर, आपका छवि शिक्षा या साहित्‍य के क्षेत्र में हमेशा के लिए खराब हो सकती है। आपका भविष्‍य धूमिल हो सकता है।

अत: साहित्यिक चोरी (plagiarism) से बचना चाहिए। ऐसी गतिविधि भूल कर भी न करें।

नकली तथ्‍य न गढ़ें।। Don’t Fabricate Fact

किसी भी सिद्धांत को गलत साबित करने के लिए या किसी विद्वान से आगे निकलने के लिए या त्‍वरित पद की प्राप्ति के लिए या जल्‍दी अपना नाम कमाने कि लिए कभी भी नकली तथ्‍य न गढ़ें। न ही अपनी शोध पत्र में किसी भी सिद्धांत (theory) को गलत तरीके से गलत साबित करें।

ऐसा करना शिक्षा जगत के नै‍तिक मूल्‍यों (research ethics) के विरुद्ध है। और दंडनीय अपराध भी।

शोध तो वास्‍‍तविक तथ्‍यों पर आधारित होना चाहिए। शोध कार्य शोध सिद्धांतों का पालन करते हुए किया जाना चाहिए।

पक्षपातपूर्ण साहित्‍य संग्रह।। Biased Data Collection

शोध कार्य का मूल उद्देश्‍य होता है नई जानकारी प्राप्‍त करना और उसे आम जनता तक पहुचाना। त्रुटिरहित ज्ञान का प्रकाशन ही एक शोधार्थी का परम धर्म है। परम कर्तव्‍य है। परम लक्ष्‍य है। परम सिद्धांत है। परन्‍तु निहित स्‍वार्थ के लिए पक्षपातपूर्ण तरीके से साहित्‍य संग्रह करने से गतल परिणाम निकलता है। और गलत परिणाम जब आम जनता तक पहुचता है तो उसके आधार पर लिया गया निर्णय भी गलत ही होता है। कई बार इस प्रकार के गतल परिणाम का बहुत घातक परिणाम समाज, देश और संसार को भुगतना पड़ता है।

अत: एक शोधार्थी को ऐसा कभी भी नहीं करना चाहिए।

नैतिक मूल्‍यों की अनदेखी।। Don’t Ignore Research Ethics

शोध के प्रत्‍येक चरण पर नैतिक मूल्‍य निर्धारित हैं जिनका पालन करना शोध जगत से जुडे सभी लोगों का परम कर्तव्‍य है। चाहे साहित्‍य संग्रह (Literature Review) हो या शोध उद्देश्‍य (Objectives) निर्धारण हो या संदर्भ ग्रन्‍थ (Reference List) की सूची बनानी हो। या सहायक का नाम गन्‍थ मेंं लिखना हो।

इन सभी जगहों पर नैतिक मूल्‍य का पालन होना चाहिए। शोध-नैतिक मूल्‍य कहता है कि जिस किसी से चाहे छोटी-सी मदद ली गई हो या बड़ी। सभी सहायता करने वालों का नाम प्रकाशन के समय लिया जाना चाहिए। क्‍योंकि कोई भी कार्य अकेले नहीं किया जा सकता है।

संदर्भ देना न भूलें।। Don’t forget Referencing

जिनका विचार हम शोध कार्य में प्रयोग कर रहे हैं उनका नाम गिनाना हो या जिनकी मदद से शोध कार्य कर रहे हैं उनका नाम पुस्‍तक में या शोध प्रबन्‍ध में लिखना हो। ऐसे लोगों का नाम लेने में आगे रहना चाहिए। ऐसा नहीं करने से शोध कार्य की गति बाधित होती है। शोध में सहायता करने वाले व्‍यक्ति का मन छोटा हो जाता है। कोई पाठक मूल खोजकर्ता तक पहुँचना चाहे तो उसका मार्ग अवरुध हो जाता है।

समकक्ष विद्वानों से राय लेना न भूलें।। Don’t Skip Peer Review

समकक्ष विद्वानों की राय लेना शोध क्षेत्र में बहुत महत्‍वपूर्ण चरण है। विद्वानों के विचार और आलोचना से शोध कार्य की गुणवत्ता को बढ़ाने में मदद मिलता है। इसके बिना शोध कार्य आगे नहीं बढ़ सकता। नए-नए सिद्धांत तभी आते हैं जब कोई विद्वान पुराने सिद्धांतों का खण्‍डन करता है।

निष्‍कर्ष को बढ़ा-चढ़ा कर न बताएं।। Don’t Overstate Findings

अपनी खोज के नतीजों को बहुत ही बढ़ा-चढ़ा कर न बताएं। ऐसा करने पर गुणवत्ता पर प्रतिकुल प्रभाव पड़ता है। शोध की गति को धक्‍का लगता है। शोध एक ऐसा क्षेत्र है जहां एक गलत निष्‍कर्ष का कितना बुरा परिणाम हो सकता है, कितने लोगोंं को इसका नुकसान हो सकता है, इसकी कल्‍पना भी नहीं किया जा सकता है।

आलोचना को अस्‍वीकार्य न करें।। Don’t reject Criticism

आलोचनाएं ही कार्य की गुणवत्ता को बढ़ाता है। शोध कार्य की कमी को उजागर करता है। शोध कार्य की कमियों को दूर करने का सबसे अच्‍छा तरीका है। नई सिद्धांत के खोजे जाने का आधार बनती हैं।

आलोचना शोध के लिए वरदान है।

अत: इसे गलत तरीके से नहीं लिया जाना चाहिए।

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