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What do you mean by journal and explain?
रिसर्च जर्नल साधारण जर्नल से अलग होता है। यहां वही लेख छपते हैं जो रिसर्च मेथाडोलॉजी का प्रयोग करके लिखे गए हों।
एक निश्चित समय अंतराल पर छपते रहते हैं। कुछ मासिक रूप से छपते हैं। कुछ त्रय मासिक, कुछ अर्धवार्षिक तो कुछ वार्षिक होते हैं। नई खोज प्रशासन का कार्य करते हैं।
ऑनलाइन एवं ऑफलाइन दोनों प्रकार के हो होते हैं।
अब ऑनलाइन रिसर्च जर्नल का प्रयलन अधिक हो गया है।
What is the full meaning of journals?
एक सब्जेक्ट में कई रिसर्च जर्नल होते हैं। उदाहरण के लिए, कैंसर से संबंधित सैकड़ो रिसर्च जर्नल हैं। कोई ब्लड कैंसर में होने वाले रिसर्च को समर्पित हैं। तो कोई माउथ कैंसर के फील्ड में होने वाले रिसर्च के लिए है।
आप जिस टॉपिक को अपने रिसर्च के लिए चयन करने वाले हैं, उसके विभिन्न आयामों पर सैकड़ो रिसर्च जर्नल छपते हैं। इनका चयन की प्रक्रिया अभी से शुरु कर देनी चाहिए। चयन करते समय आपको न सिर्फ टॉपिक का ध्यान रखना होगा बल्कि उस टॉपिक के आयाम को भी देखना होगा। जो रिसर्च प्रकाशन कर रहे हैं वहीं आपके रिसर्च में काम देगा।
इनका चयन करने में समय लगता है। क्योंकि रिसर्चर को स्वयं अपने रिसर्च एरिया के स्पेशलाइजेशन के अनुसार चयन करना पड़ता है। इसीलिए अपने विषय से संबंधित जो भी रिसर्च जर्नल का पता चले उसका नाम एवं यूआरएल लिंक जरूर अपने पास सुरक्षित कर लेना चाहिए।
इसका संचालन विद्वानों की कमेटी करती है। जो भी रिसर्च पेपर यहां छपने के लिए आते हैं, उसका रिसर्च मेथाडोलॉजी के दृष्टिकोण से समीक्षा किया जाता है। डाटा की विश्वसनीयता जांची जाती है। पेपर में जो निष्कर्ष दिया गया है, उसकी भी वैधता जाती है। इसके बाद ही कोई पेपर रिसर्च जनरल में छपता है।
छापने से पहले रिसर्च पेपर को संबंधित विद्वानों के पास समीक्षा एवं सुझाव के लिए भेजा जाता है।
रिसर्च जनरल का मुख्य काम है नई-नई रिसर्च को प्रकाशित करना। रिसर्च करने के लिए नए या आवश्यक एरिया के बारे में रिसर्च के बीच में जागरूकता लाना। जिस विषय में रिसर्च की आवश्यकता हो, जिस विषय पर रिसर्च की आवश्यकता हो। उसे रिसर्चर के समक्ष लाना।
शिक्षा जगत में नए-नए खोज करते रहना और समस्याओं का निदान करते रहना ही रिसर्च जर्नल का कार्य होता है।
रिसर्च जर्नल की गुणवत्ता को नापने के लिए एक पैमाना होता है जिसे इंपैक्ट फैक्टर कहते हैं। जिस रिसर्च जर्नल का इंपैक्ट फैक्टर जितना अधिक होता है वह उतना ही अधिक प्रभावशाली माना जाता है।
इंपैक्ट फैक्टर यह बताता है कि उसे रिसर्च जर्नल में छपी बातें को कितना गंभीरता के साथ लिया जाता है। जिसका जितना अधिक इंपैक्ट फैक्टर होगा, उस रिसर्च जर्नल में कही गई बातें उतनी अधिक प्रभावी होगी। और अधिक से अधिक विद्वानों के पास पहुंचेगी।
अधिक इंपैक्ट फैक्टर वाले रिसर्च जर्नल में पेपर छपवाना सभी रिसर्चर का सपना होता है। इससे रिसर्चर का ख्याति तो बढ़ता ही है साथ ही साथ उसे पदोन्नति में भी लाभ मिलता है। रिसर्च फंडिंग लेने में भी अधिक इंपैक्ट फैक्टर वाले रिसर्च जर्नल में छपे पेपर का बहुत बड़ा योगदान होता है।
रिसर्च जर्नल में पेपर छपने से एक रिसर्चर के लिए रिसर्च फंडिंग मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
रिसर्च जर्नलमें छपने वाले लेखों को अधिक से अधिक पढ़ें। इससे अपने फील्ड का अप टू डेट जानकारी रहेगा। किस टॉपिक पर रिसर्च हो रहा है। नया ट्रेंड क्या चल रहा है, यह भी पता चलेगा। रिसर्चर अपने द्वारा खोजी गई जानकारी को अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने के लिए रिसर्च जर्नल का प्रयोग करते हैं।
रिसर्च जर्नल एक प्लेटफार्म का भी काम करता है। जहां रिसर्चरों का जमावड़ा लगता है। एक दूसरे से जान पहचान बढ़ाने, एक दूसरे के रिसर्च के बारे में जानकारी लेने एवं मदद करने का भी माध्यम का कार्य करते हैं।
Publication manual for research journal
प्रत्येक रिसर्च जर्नल का अपना-अपना नियम होता है। रिसर्च पेपर को किस फॉन्ट में लिखकर भेजना है। फ़ॉन्ट का साइज कितना होना चाहिए। संदर्भ ग्रंथ सूची APA सिस्टम में बनना चाहिए या कोई दूसरा सिस्टम में इत्यादि बातें रिसर्च जर्नल स्वयं तय करते हैं।
यहां रिसर्च पेपर छापने के लिए दो प्रकार के दिशा निर्देश रिसर्च जर्नल के वेबसाइट पर दिया रहता है। पहला, रिसर्चर के लिए। दूसरा, रिसर्च पेपर के लिए।
जिस रिसर्च को रिसर्च पेपर छपवाना होता है, सबसे पहले प्रकाशन से संबंधित दिशा निर्देश को पढ़ लेते हैं। इसके साथ-साथ लेखन संबंधी दिशा निर्देश को भी सावधानी से पढ़ते हैं। उनका पालन करते हुए अपना रिसर्च पेपर रिव्यु के लिए भेजते हैं।
एक रिसर्चर के लिए बहुत खुशी का क्षण होता है जब उसका रिसर्च पेपर किसी हायर इंपैक्ट वाले साइंटिफिक जनरल में छपता है। छपने से पहले रिसर्च पेपर का कई बार समीक्षा होता है। रिसर्च पेपर में सुधार करने के लिए रिसर्चर के पास सुझाव आते हैं। रिसर्च उन सुझावों के अनुसार रिसर्च पेपर में सुधार कर पुनः जर्नल के पास भेजता है। यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक रिसर्च जर्नल की एडिटोरियल कमेटी के मापदंड के मुताबिक रिसर्च पेपर की गुणवत्ता न हो जाती है।
इसीलिए अपने टॉपिक से संबंधित रिसर्च जर्नल की एक सूची बननी चाहिए। वहां पर छपने वाले रिसर्च पेपर को नियमित रूप से पढ़ते रहना।