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पैरवी कब लग लगता है? दो ही स्थिति में। जिसके पास पैरवी लगाना हो उसके बारे में मालूम और जो पैरवी लगाना चाहता है वह उसके पास किसी प्रकार से संपर्क कर सकने की परिस्थिति में। रिसर्च पेपर छपने में पक्षपात कब हो सकता है? जब कोई समीक्षक के पास ऐसे व्यक्ति का पेपर आता है जिससे वह पहले से परिचित हो, या किसी ने पैरवी कर दिया।
रिसर्च पेपर के प्रकाशन में पैरवी सिस्टम का कुछ लोग सहारा लेना चाहते हैं। इससे निम्न स्तर के रिसर्च पेपर को भी प्रकाशक को प्रकाशित करना पड़ता है। इसी समस्या को दूर करने के लिए एक समाधान निकाला गया, जिसे Double Blind Peer Review करते हैं।
Double Blind मतलब दोनों अंधे हैं। ये दोनों कौन हैं? पहला वो है जो रिसर्च पेपर या अकादमिक डॉक्यूमेंट प्रकाशन कराने के लिए रिसर्च जर्नल के पास भेज रहा है और दूसरा वह जिसके पास रिसर्च पेपर या डॉक्यूमेंट को जर्नल द्वारा समीक्षा करने के लिए भेजा जाता है।
यह दोनों अंधे हैं। इसका तात्पर्य यही हुआ कि ना रिसर्च पेपर के ऑथर को यह पता चल पाता है कि पेपर की समीक्षा कौन कर रहा है? या उसे समीक्षा करने के लिए किसके पास भेजा गया है? इस दृष्टिकोण से ऑथर अपने समीक्षक के बारे में अनजान होता है। इस अज्ञानता के कारण ऑथर को अंधा (blind) कहा जाता है।
दूसरा जो समीक्षक होता है, जिसके पास वह डॉक्यूमेंट समीक्षा करने के लिए आई हुई होती है। वह भी नहीं जान पता है कि इस पेपर को लिखने वाला कौन व्यक्ति है? ऑथर के बारे में उसकी अज्ञानता के कारण उसे भी अंधा (blind) माना जाता है।
इस प्रकार न ऑथर समीक्षक को जानता है और न समीक्षक ऑथर को। इसी को Double Blind Peer Review कहते हैं।
सिंगल-ब्लाइंड vs डबल-ब्लाइंड पीयर रिव्यू
जिस प्रक्रिया में समीक्षक (reviewer) को पता होता है कि यह पेपर किस ऑथर ने लिखा है उसे Single Bilnd Peer Review कहते हैं। क्योंकि रिसर्च जर्नल की टीम ऑथर का नाम आदि जानकारी पेपर के साथ समीक्षक के पास भेज देती है। इसमें सिर्फ ऑथर को नहीं पता होता है कि उसका पेपर किस समीक्षक के पास गया है? इस प्रक्रिया में सिर्फ एक ही व्यक्ति यानि ऑथर ही समीक्षक के बारे में अज्ञान होता है। इसलिए इसे सिर्फ Peer Review या Single Blind Peer Review कहते हैं।
Double Blind Peer Review Process
जब कोई ऑथर अपना paper or academic document रिसर्च जर्नल के पास प्रकाशन हेतु भेजता है, तो उसमें ऑथर अपना Affiliation भी लिखता है। Affiliation मतलब वह किस पद पर है? कहां कार्यरत है? उसका पद क्या नाम क्या है? इत्यादि भी रिसर्च पेपर में लिखकर भेजता है। रिसर्च जर्नल का एडिटोरियल कमेटी उस रिसर्च पेपर से ऑथर की अकादमिक जानकारी हटा देती है। समीक्षक के पास सिर्फ और सिर्फ रिसर्च पेपर या एकेडेमिक डॉक्यूमेंट ही भेजती है।
इस प्रकार reviewer और author दोनों एक दूसरे से अनजान रहते हैं।
पूरी प्रक्रिया को Double Blind Peer Review Process कहा जाता है।
रिसर्चर को इसके बारे में जानकारी क्यों होनी चाहिए?
इस प्रक्रिया के बारे में जानकारी होने से ऑथर को इसके अनुरूप अपने आप को ढालने में आसानी होती है। ऑथर को यह विश्वास हो जाता है कि रिसर्च जर्नल में मेरा पेपर तभी छपेगा जब इसकी गुणवत्ता उच्च कोटि की होगी। किसी भी प्रकार की पैरवी काम नहीं आने वाली है।
यह गुणवत्ता को बढ़ावा देने वाली प्रक्रिया है। इस प्रकार वह अपना ध्यान रिसर्च पेपर को अधिक गुणवत्तापूर्ण बनाने में लगाता है।
ऑथर को समीक्षक के द्वारा जो सुझाव दिया जाता है, उसे वह पूरा करता है। वह समझता है कि अगर हम सुझाव के अनुरूप पेपर में परिवर्तन नहीं किरेंगे तो मेरा पेपर रिजेक्ट कर दिया जाएगा।
Double Blind Peer Review का महत्व
यह रिसर्च में पक्षपात या पूर्वाग्रह जैसी समस्या को खत्म करता है। कभी-कभी ऑथर की लोकप्रियता एवं विद्वता इतनी अधिक होती है कि यदि इसकी जानकारी समीक्षक को हो जाए। तो वह कुछ भी सुझाव या टिप्पणी करने से हिचकने लगेगा। परन्तु जब ऑथर के बारे में जानकारी ना हो तो वह अपनी ज्ञान और अनुभव के आधार पर उस पेपर की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए सुझाव देता है। उसे किसी प्रकार के हिचक या दबाव का अनुभव नहीं होता है।
इससे शिक्षा के क्षेत्र या शोध के क्षेत्र में पक्षपात कम होता है। और गुणवतापूर्ण माहौल को बढ़ावा मिलता है।
शोध के क्षेत्र में गुणवत्ता बढ़ाने की दृष्टि से भी यह प्रक्रिया बहुत अच्छी मानी जाती है। इसमें समीक्षक रिसर्च पेपर की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए आवश्यक सुझाव देता है। रिसर्च पेपर की निष्पक्षता से समीक्षा करता है। उसकी कमियों को पहचान कर उसे दूर करने के लिए सुझाव देता है।
यह प्रक्रिया निष्पक्षता को बढ़ाने में मदद करता है। पक्षपात तभी काम करता है जब ऑथर और reviewer एक दूसरे को जानते हों। या अगर ऑथर को मालूम चल जाए कि किस समीक्षक के पास गया है तो उससे संपर्क करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपना सकता है। लेकिन नहीं पता होने की स्थिति में वह पूर्ण रूप से अपने पेपर की गुणवत्ता को सुधारने पर ध्यान देता है।
यह प्रक्रिया सामान्य रूप से सभी रिसर्च जर्नल में अपनाया जाता है।
इसमें समय लगता है। प्रकाशक की टीम को अधिक मेहनत करना पड़ता है। ऑथर का नाम हटाकर एक कोड दिया जाता है। समीक्षा हो जाने के बाद वह उस कोड के अनुसार ऑथर की पहचान कर आवश्यक सुधार करने के लिए पेपर को पुन: भेजता है।
समीक्षा करने के और भी अधिक लोकप्रिय प्रक्रिया हैं। रिव्यू करने वाले विश्वसनीय प्रक्रिया में से एक है: Double Blind Peer Review
रिसर्च के प्रकाशन की गुणवत्ता को बढ़ाने में एवं शिक्षा के क्षेत्र से पक्षपात को दूर करने में यह बहुत मददगार है।