Covid-19 के बाद सबसे बड़ा वैश्विक सर्वे. वैज्ञानिकों पर विश्‍वास करने में भारत दूसरे नंबर पर

Credit: X handle PM Modi

कोविड-19 के बाद का सबसे बड़ा वैश्विक सर्वे में लोगों ने वैज्ञानिकों के ऊपर बहुत ज्यादा विश्वास जताया है। इस सर्वे में 70000 से अधि‍क लोगों ने भाग लिया। नेचर जर्नल में 14 फरवरी 2024 को छपे एक लेख में बताया गया है कि वैज्ञानिकों से संबंधित लोगों में हाई लेवल आफ ट्रस्ट है। सर्वे में यह दावा किया गया है कि भिन्न-भिन्न देशों में वैज्ञानिकों पर ट्रस्ट पॉलिटिकल कारण से भी है। इस सर्वे को परिणाम बहुत सकारात्मक है। सर्वे में कहा गया है कि कोविड-19 जैसे वैश्विक महामारी के कारण ही लोगों में वैज्ञानिकों के प्रति विश्वास बढ़ा है।

ऑकलैंड स्थित  न्यूजीलैंड के मेसी यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिक जेम्स लूई का मानना है कि ओवर ऑल बहुत ही सकारात्मक पर‍िणाम है। शोधकर्ता नान ली इस शोध में भाग लि‍ये। उन्होंने कहा कि इस शोध में वैज्ञानिकों पर विश्वास को मापने के लिए एक दो नहीं, कई प्रकार के फैक्टर का प्रयोग किया गया।  

इस शोध की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें दुनिया भर के सभी कोने से रिसर्चर को शामिल किया गया। वैश्विक महामारी कोविड-19 के बाद वैज्ञानिकों पर विश्वास इस दृष्टि से किया गया यह सबसे बड़ा रिसर्च है। सबसे बड़ा सर्वे है। इसमें कुल 71417 लागों को शामिल किया गया। दुनिया भर के 67 देश के लोग इसमें भाग लिए।

इस रिसर्च में रिसर्चर के चयन की प्रक्रिया कहीं-कहीं पर ऑनलाइन अपनाई गई। इसमें मार्केटिंग कंपनी का भी रिसर्चर सिलेक्शन प्रोसेस में सहारा लिया गया। डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो अपवाद स्वरूप रहा। जहां पर वैज्ञानिकों ने व्यक्तिगत रूप से जाकर सर्वे किया। वैज्ञानिकों से संबंधित लगभग एक दर्जन से अधिक सवाल पूछे गए। वैज्ञानिकों के कार्य क्षमता, उनका लगन, दयाभाव और सहृदयिता से संबंधित प्रश्न पूछे गए।

स्केल के तौर पर 1 से 5 का इस्तेमाल किया गया।

साधारण भाषा में ऐसे समझिए कि लोगों से पूछा गया कि वैज्ञानिकों में दया भाव यानी benevolence कितना होता है? 1 से 5 में कितने अंक दें। उत्तर अंक पांच मिला इसका मतलब यह है कि लोग मानते हैं कि वैज्ञानिक में सबसे अधिक दया भाव होता है।

इस रिसर्च में वैज्ञानिकों के प्रति औसत विश्वास यानि Trust 3.62 है।

यानी 5 में से साढ़े तीन से भी अधिक अंक मिला।

लोगों का मनना है कि वैज्ञानिक बहुत दक्ष होते हैं। और उनमें दया भाव के साथ साथ एकता की भावना भी अच्छा (moderate) होता है।

23% लोगों का मानना था कि वैज्ञानिक दूसरी बातों में या दूसरे के विचारों में ना के बराबर हस्तक्षेप करते हैं।

लगभग 75% लोगों का मानना था कि कोई भी चीज सत्य है या नहीं। इसके लिए वैज्ञानिक पद्धति ही सबसे अच्छी पड़ती है

Egypt यानी मिश्र के लोगों ने वैज्ञानिकों में सबसे अधिक ट्रस्ट दिखाए।

भारत के लोग वैज्ञानिकों पर ट्रस्ट करने में दूसरे स्थान पर हैं।

इसके बाद नाइजीरिया का नंबर आता है।  अल्बानिया, कज़ाख़िस्तान और बोलिविया के लोग वैज्ञानिकों पर सबसे कम विश्वास करते हैं।

यूनाइटेड स्टेटस, यूनाइटेड किंगडम, ऑस्ट्रेलिया और चीन के लोग एवं एवरेज लेवल का ट्रस्ट करते हैं वैज्ञानिकों पर।

वहीं जर्मनी, हांगकांग और जापान के लोगों का वैज्ञानिकों पर ट्रस्ट बिलो एवरेज है।

इस सर्वे के रिजल्ट में भारत से संबंधित आंकड़ा सभी को चौंका दिया। वैश्विक स्तर पर यह देखा गया कि जिस देश में लेफ्ट विचारधारा की सरकारें हैं वहां के लोग वैज्ञानिकों पर अधिक विश्वास करते हैं। न्‍यू डेमोक्रेसी ग्रीस का उदाहरण देते हुए कहा गया है यहां पर राइट विचार धारा की सरकार 2020 से है। जो स्‍वस्‍थ्‍य सेवाओं संबंधित रिसर्च को बहुत ही फंडिंग दे रही है। नेचर जर्नल सर्वे के इस आकडे की व्‍याख्‍या करते हुए लिखता है कि इसका कारण यह है कि सरकार राइट विचारधारा की है और वह स्‍वास्‍थ्‍य पर खर्च कर रही है इसलिए वहां के लागों का वैज्ञानिक में हाइअर ट्रस्‍ट है।

भारत most trust in scientiests में विश्‍व में दूसरे स्‍थान

भारत का तो नेचर वाले लेख में नाम नहीं पर है। पर यह बात भारत पर उतना ही लागु होता है। क्‍योंकि पुरे विश्‍व की मिडीया भारत में राइट विचारधारा की सरकार है यह मानती है। कोविड-19 में भारत ने दो दवाओं का आविस्‍कार किया। भारत ने न सिर्फ अपने 140 करोड लागों का दो डोज दिया और बुड्ढे और बच्‍चों को  बुस्‍टर डोज भी दिया। भारत सरकार लगातार तीन बार मंगलयान को फंडिंग दिया। सर्वे में कहा गया है कि भारत के लोग का वैज्ञानिकों पर सर्वाधिक ट्रस्‍ट (most trust in scientiests) में विश्‍व में दूसरे स्‍थान पर हैं।

ग्रीस और भारत के आकडों को रिसर्चर कंट्रास्टिंग फाइंडिंग्स कह रहे हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि पॉलीटिकल पार्टीजिस जिस तरीके से साइंटिस्ट के साथ व्यवहार करती हैं लोग भी वैसे ही साइंटिस्ट के प्रतिविश्वास व्यक्त करते हैं।

रिसर्चर  पॉलिसी मेकिंग में भागीदारी करनी चाहिए

50 परसेंट से ज्यादा लोग  चाहते हैं कि रिसर्चर  अधिक से अधिक पॉलिसी मेकिंग में भाग लें। राजनेताओं के साथ मिलकर काम करें। जिससे कि पॉलिसी मेकिंग में निर्णय लेने में वैज्ञानिक आंकड़ों का प्रयोग हो। मनोवैज्ञानिक लूई का मानना है कि अगर लोग साइंटिफिक उत्तर में विश्वास कर रहे हैं और साइंटिस्ट को राजनेताओं के साथ मिलकर पॉलिसी मेकिंग में भाग लेने की उम्मीद कर रहे हैं तो यह अच्छी बात है।  

रिसर्चर को ट्रेनिंग की आवश्‍यकता

सर्वे में यह पाया गया कि 80% लोग यह चाहते हैं कि रिसर्चर को साइंस की नई खोजों और जानकारियों को आम लोगों के साथ साझा करनी चाहिए। शोधकर्ता मनोवैज्ञानिक लूई का मानती हैं कि वैसे रिसर्चर जो पॉलिसी मेकिंग में जाना चाहते हैं, उन्हें और अधिक ट्रेनिंग की आवश्यकता है। इसके साथ वह यह भी जोड़ती हैं कि अधिक रिसर्चर को कम्युनिकेशन स्किल पर कार्य करने की आवश्यकता है।

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