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यह एक प्रक्रिया है एकेडमिक में। यह बहुत जरूरी कार्य है। रिसर्च के क्षेत्र में कॉपी एडिटिंग के बिना ना तो रिसर्च पेपर का प्रकाशन हो सकता है, ना पुस्तक का प्रकाशन हो सकता है ना एडिटेड बुक का प्रकाशन हो सकता है। ना इनसाइक्लोपीडिया का प्रकाशन हो सकता है। किसी भी प्रकार का प्रकाशन से पहले डॉक्चूमेंट की त्रुटियों की जांच की जाती है। और उसकी गुणवत्ता को बढ़ाया जाता है। त्रटियों की जांच करना एवं रिसर्च मटेरियल जिसका प्रकायशन करना है उसकी गुणवत्ता को बढ़ाना ही कॉपी एडिटिंग का मुख्य उद्देश्य है।
कॉपी एडिटिंग करते समय कुछ बातें
कंटेंट संबंधित बातों को विशेष रूप से ध्यान दिया जाता है। रिसर्च पेपर या पुस्तक जिस टॉपिक के ऊपर लिखा गया है। उससे संबंधित सभी कंटेंट या आवश्यक कंटेंट उस एकेडमिक डॉक्यूमेंट में है या नहीं। कॉपी एडिटिंग के दौरान सबसे पहले यह देखा जाता है। अगर नहीं है तो कंटेंट एडिटर ऑथर को यह सलाह देता है कि एकेडमिक डॉक्यूमेंट की गुणवत्ता को बढ़ाने के लिए किस प्रकार के कंटेंट की और आवश्यकता है।
लिखी गई भाषा सुस्पष्ट, सरल एवं सुबोध हो। इस उद्देश्य की प्राप्ति भी कंटेंट एडिटिंग से की जाती है। भाषा का स्तर एकेडमिक डॉक्यूमेंट के पाठक के ऊपर निर्भर करता है। अगर पाठक सामान्य विद्यार्थी है तो उसकी भाषा सामान्य रखी जाती है। अगर पाठक विद्वानों का वर्ग या विशेषज्ञों का वर्ग है तो एकेडमिक डॉक्यूमेंट का की भाषा कलिस्ट रखी जाती है।
पहले पैराग्राफ में जिस बातों को कहा गया है, उसका सीधा सीधा संबंध दूसरे पैराग्राफ से हो इसे भी कॉपी एडिटिंग दौरान सुनिश्चित किया जाता है। पहले टॉपिक का संबंध दूसरे टॉपिक से, दूसरे टॉपिक का संबंध तीसरे टॉपिक से, इस क्रमिक रूप से सभी टॉपिक एक दूसरे से जुडे हों। इसके बाद, पहला चैप्टर का संबंध दूसरे चैप्टर से, दूसरे का संबंध तीसरे चैप्टर से, इस प्रकार से यह संबंध तार्किक ढंग से हो। इस बात को भी कॉपी एडिटिंग के दौरान सुनिश्चित जांचा जाता है।
किसी भी प्रकार की त्रुटि न हो
एकेडमिक डॉक्यूमेंट में किसी भी प्रकार की त्रुटि न हो। जैसे स्पेलिंग से संबंधित कोई गलती ना हो। कॉमा, खड़ी पाई, डबल इंपोर्टेड कॉमा सही सही हो। डाटा का सही-सही टाइप किया गया हो। डाई क्रिटिकल मार्क जैसे अंग्रेजी में a के ऊपर एक लाइन खींचा रहता है: ā। किसी शब्दों में डाइट्रिटिकल मार्क होता है। डाइक्रिटिकल मार्क भी सही-सही हो। यह काम भी कॉपी एडिटिंग के दौरान होता है।
जब एकेडमिक डॉक्यूमेंट तैयार करने में अधिक समय लगता है। तो भाषा के स्तर में परिवर्तन देखने को मिलता है। डॉक्यूमेंट में प्रारंभ से लेकर के अंत तक भाषा की गंभीरता एक समान हो। पाठक को ध्यान में रखते हुए, उसे सरल और सुबोध बनाए रखने की भरपूर कोशिश हो। इस बात की जांच भी कॉपी एडिटिंग में की जाती है।
ऑथर अपनी बातों को एक्टिव वॉइस में यानी कर्तरी वाच्य में रखता है या कर्मवाच्य में यानि पैसिव वॉइस में। किस स्थान पर किस तरीके से बात रखना प्रभावित होगा। यह भी कॉपी एडिटिंग में किया जाता है। जैसे परिभाषा देते समय किसी विद्वान की बातों को शब्दश: रखा जाता है, तो इसका प्रभाव अधिक होता है। इसकी जांच करना भी आसान होता है। उस विद्वान का विचार भी सही सही पाठक तक पहुच पाता है। इसी प्रकार से अगर किसी डॉक्यूमेंट में छपी डाटा को चुनौती देकर उसका खंडन करना है। उस स्थिति में भी हमें उस डॉक्यूमेंट की बातों को डायरेक्ट कोटेशन (“ ” ) में लिखना पड़ता है। कब डायरेक्ट कोटेशन में लिखना है। कब अपने शब्दों में इस बातों को लिखना है। कब एक्टिव वॉइस में लिखना है। कब पैसिव वॉइस में लिखना है। कॉपी एडिटर को एडिटिंग कर दौरान इस बात को ध्यान में रखना पड़ता है।
कॉपी एडिटर
एक कॉपी एडिटर डॉक्यूमेंट को एडिट करते समयउसमें आवश्यक परिवर्तन लाता है। साथ ही साथ यह भी ध्यान रखना है कि डॉक्यूमेंट का मूल कॉन्सेप्ट बना रहे।
कॉपी इडिटिंग का उच्च गुणवत्ता वाले एकेडमिक डॉक्यूमेंट को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका है। अगर किसी डॉक्यूमेंट का कॉपी एडिटिंग किया जाता है तो उसकी क्रेडिबिलिटी यानि विश्वसनीयता बढ़ जाती है। रिसर्च में क्रेडिबिलिटी का बहुत बड़ा रोल होता है।
कॉपी एडिटिंग के दौरान डाटा, टेबल, फिगर को ठीक किया जाता है। व्याकरण के दृष्टिकोण से डॉक्यूमेंट की जांच करना, कहीं से लिये गये कथन (citation) को सही सही लिखा गया हो (referencing), की जांच करना, टेक्निकल टर्म्स का डाइक्रिटिकल मार्क्स सही से दिये गये हों। फैक्ट सही हो और डॉक्यूमेंट को प्रकाशित करने वाले प्रकाशक के गाइडलाइन को पुरा कर रहा हो। इसका फोंट का आकार, उसका रंग, स्पेसिंगइ, इत्यादि करना ही कॉपी एडिटिंग के दौरान होता है।
कॉपी एडिटिंग करने वाले को कॉपी एडिटर कहते हैं। डॉक्यूमेंट में अगर कोई गलती पाई जाती है, कोई वाक्य या पैराग्राफ का अर्थ सही-सही नहीं निकल पा रहा है, तो उसे ठीक करना कॉपी एडिटर का काम है।
अगर कोई डाटा को जोडने की जरुरत है तो कॉपी इडिटर डॉक्यूमेंट के ऑथर को इसकी सूचना देता है। वह डॉक्यूमेंट में लिख कर ऑथर के पास भेज देता है। ऑथर सुधार कर पुन: प्रकाशक के पास भेजता है।
कॉपी इडिटिंग का कार्य प्रत्येक प्रकाशक कंपनीयां
कॉपी इडिटिंग का कार्य प्रत्येक प्रकाशक कंपनीयां जैसे मोतीलाल बनारसी दास प्रकाशन, गीता प्रेस प्रकाशन, ऑक्सफोर्ड प्रकाशन आदि अपने पास छापने के लिए आये सभी डॉक्यूमेंट का कराती हैं।
ऑथर स्वयं भी
ऑथर स्वयं भी प्रकाशक के पास भेजने से पहले डॉक्यूमेंट को किसी विद्वान के पास भेजकर उसका कॉपी इडिटिंग कराता है। उसमें शुद्ध करने की पुरा कोशीश करता है।
difference between proofreading and copy editing
दोनों में यहीं अंतर है कि पहले में एक विद्वान की जरुरत होती है।प्रुफ रिडिंग कोई डॉक्यूमेंट जिस विषय का है उस विषय का सामान्य जानकार व्यक्ति कर सकता है। प्रुफ रिडिंग में ऑथर जो लिखा है वहीं टाइप हुआ है या नहीं यहीं जांच की जाती है।
संक्षेप में कहें तो एकेडमिक डॉक्यूमेंट को सभी प्रकार की त्रुटियों से मुक्त कर देना, डॉक्यूमेंट में किसी भी प्रकार की कोई कमी ना रहे, यह कार्य कॉपी एडिटर का होता है। और इस प्रक्रिया को कॉपी एडिटिंग करते हैं।