साहित्यिक चोरी: परिभाषा, प्रकार, बुरे परिणाम और बचने के उपाय।। Plagiarism: Definition, types, consequences and method to avoid

अगर आप एक शोध छात्र (research scholar) हैं, शोध कार्य कर रहे हैं या अपनी थीसिस (thesis) जमा करने की तैयारी कर रहे हैं या एक ऐसे छात्र हैं जो भविष्‍य में शोध क्षेत्र में आना चाहते हैं तो यह blog सिर्फ आपके लिए है।

इस Blog में मैं एक ऐसे विषय के बारे में बता रहा हूं जिससे हर शोध छात्र डरता है। कोई भी यह नहीं चाहता कि उसके लिखित लेख या पुस्‍तक में यह ग्रहण लगे। जी हां, मैं बात कर रहा हूं Plagiarism यानि साहित्यिक चोरी की। शिक्षा जगत में यह एक बदनुमा धब्‍बा है। इस धब्‍बा से हर शोधार्थी अपने दामन को बचाए रखना चाहता है। इसका छिंटा भी नहीं पड़ने देना चाहता है।

आइए इसे विस्‍तार से समझते हैं।

साहित्यिक चोरी क्‍या है?

Plagiarism को हिन्‍दी में ‘साहित्यिक चोरी’ कहा जाता है। जब कोई भी व्‍यक्ति किसी ऑथर यानि विद्वान की रचनाओं की शब्‍दों को या तस्‍वीर को या कोई अन्‍य प्रकार के आंकडा को बिना मूल ऑथर का नाम लिए थीसिस या शोध पेपर में लिखता है तो इस कार्य को Plagiarism  यानि साहित्यिक चोरी कहा जाता है। किसी पुस्‍तक या शोध प्रपत्र से कुछ लिखित अंश या विचार को अपनी शोध पत्र या थीसिस या पुस्‍तक में प्रयोग किये इसके साथ ही उस विद्वान का नाम भी लिखित अंश या विचार को लिखने के तुरन्‍त बाद लिख दिए हैं तो यह Plagiarism नहीं कहलाता है।

किसी दूसरे के शब्‍द या विचार का प्रयोग करके उस विद्वान का नाम का उल्‍लेख कर देने पर किसी भी तरह का कोई Plagiarism नहीं हुआ।  

नई शोध की गति कम करता है।। Plagiarism undermines new research

शिक्षा के क्षेत्र में या शोध के क्षेत्र में Plagiarism को गंभीर नैतिक अपराध माना जाता है। इससे बौद्धिक क्षेत्र में मूल शोध के प्रयास करने वालों में निराशा का भाव जागृत होता है। उनका उत्‍साह धीमा पड़ने का खतरा रहता है। नई विचार उत्पत्ति के लिए किये जा रहे प्रयास  या नई खोज करने वाले की परिश्रम करने की हिम्‍मत टूटता है। मौलिक शोध (original research) करने वालों की संख्‍या कम होने लगती है। शोध में स्‍वस्‍थ्‍य प्रतिस्‍पर्धा का माहौल बिगड़ता है। अत: इसके लिए कई प्रकार के दंड का भी प्रावधान है। जिसका जिक्र आगे किया गया है।

साहित्यिक चोरी के प्रकार।। Types of Plagiarism  

हु-ब-हु उतार लेना

जब हम किसी पुस्‍तक या शोध पत्र से कुछ वाक्‍य, पाराग्राफ या पुरा का पुरा पेज ही ज्‍यों का त्‍यों उतार लेते हैं परन्‍तु उस ऑथर या विद्वान के नाम का जिक्र तक उस पेपर आदि में कहीं नहीं करते हैं तो यह Plagiarism हुआ। इस प्रकार के चोरी को अंग्रेजी में Direct Plagiarism कहते हैं। इसे Verbatim Plagiarism भी कहा जाता है। साधारण भाषा में इसे Copy & Paste करना कहते हैं।  

भावार्थ नकल करना

कुछ लोग यह सोचकर कि सीधे-सीधे न उतार कर किसी पुस्‍तक/शोध पत्र का भावार्थ समझकर उसे अपनी भाषा में लिख देने से कोई जान ही नहीं पाएगा। तो फिर जिसके पुस्‍तक पढ़कर यह भावार्थ लिख रहे हैं उसका नाम उल्‍लेख करने की क्‍या आवश्‍यकता ही क्‍यों है। वे मानते हैं कि ऐसा करना कोई Plagiarism नहीं होता है। परन्‍तु शोध में इसे भी Plagiarism माना जाता है। अंग्रेजी में इसे Paraphrasing Plagiarism कहते हैं। इसमें शब्‍द का तो कोई चोरी नहीं होती परन्‍तु विचार का चोरी होता है।

खिचड़ी नकल करना

कुछ लोग एक लेख लिखने के लिए किसी एक पुस्‍तक या शोध पेपर से पुरा का पुरा कॉपी नहीं करते हैं। वे एक लाइन इस पुस्‍तक से, दो लाइन उस शोध पत्र से चुराते हैं। ऐसा कर करके वे नया नया वाक्‍य और पाराग्राफ बनाते हैं। इस प्रकार से वे अपनी लेखन क्रिया को पुरा करते हैं। इसे पेवन साटना भी कहा जाता है। जिस प्रकार एक कपड़ा फट जाने पर उसके उपर कई प्रकार के कपड़ों को जोड़ दिया जाता है। ‘पेवन’ देखने पर सरलता से पहचान में आ जाता है क्‍योंकि कपड़ों का रंग और सिलावट भिन्‍न-भिन्‍न होता है। उसी प्रकार, चोरी से तैयार इस लेख में वाक्‍य बनावट, शब्‍द चयन और लेखन शैली अलग-अलग होती है। क्‍योंकि‍ इसे कई प्रकार के लेखों से लेकर तैयार किया गया है। हर लेखक की लेखन शैली एक-सी नहीं होती है। अंग्रेजी में इसे mosaic plagiarism कहते हैं।

स्‍वयं से नकल

एक नया विचार आया है शोध के क्षेत्र में। पहले कुछ शोध विद्वान या शोध छात्र अपनी पूर्व की रचनाओं से हु-ब-हु उतार लेते थे या अपनी ही पूर्व के प्रकाशित विचारों के कुछ अंश को नई पुस्‍तक में भी पुन: प्रकाशित करते थे। ऐसा करना गलत नहीं है। आवश्‍यकता होने पर किया जा सकता है। परन्‍तु उस पुस्‍तक का व प्रकाशन वर्ष का जिक्र करना नितांत आवश्‍यक है। ऐसा नहीं करने पर पाठक को यह लगेगा कि यह विचार या निष्‍कर्ष हर बार की शोध में आ रहा है। अत: यह निष्‍कर्ष बहुत ही विश्‍वसनीय है। जबकि शोधकर्ता ने कोई नई शोध नहीं की। वो तो पुरानी ही शोधांश का यहां उल्‍लेख किया है। अत: इस प्रकार कि गलत परंपरा को रोकने के लिए विद्वानों ने इसे ‘स्‍वयं से नकल’ कहा है। ऐसा करना भी एक चोरी का प्रकार माना गया है। अंग्रेजी में इसे Self-Plagiarism कहते हैं। इसे Duplicate Publication भी कहा जाता है।

गलत उल्‍लेख करना

अगर कोई शोध छात्र किसी पुस्‍तक से कुछ लिखित अंश हु-ब-हु उतार लिया या पुस्‍तक के विचार को अपनी लेखन कार्य में प्रयोग किया। उसने लेखक का नाम व प्रकाशन वर्ष का भी जिक्र किया। परन्‍तु ऑथर को लिखने का जो तरीका है उसका पालन नहीं किया। या वह नाम लिखने में वर्तनी संबंधि त्रुटि किया या वर्ष को गलत बता दिया तो ऐसा करना भी साहित्यिक चोरी यानि Plagiarism माना जाता है क्‍योंकि अगर कोई पाठक उस मूल स्रोत तक पहुँचना चाहे तो गलत नाम लिखने के कारण शायद नहीं पहुच पाए। इससे शोध की प्रगति को नुकसान होता है।

शोध में Plagiarism को बहुत ही गंभीरता से लिया जाता है।  कारण यह है कि इसका दुष्‍परिणाम बहुत ही घातक होता है। समाज एवं देश के प्रगति में इसे सबसे बड़ा बाधक माना जाता है। कोई भी समाज नई नई खोज से ही आगे बढ़ता है। समाज की जरुरतों को पुरा करने के लिए भी नई शोध की आवश्‍यकता पड़ती है। शोध से समाज की समस्‍या को भी दूर करने में मदद मिलता है। अत: शोध को Plagiarism मुक्‍त बनाने के लिए सरकार व शिक्षण संस्‍थाएं अनेक कदम उठाए हैं।

अब बिना Plagiarism  जांच किये कोई भी थीसिस (thesis) जमा नहीं होता है।

साहित्यिक चोरी से बचने का उपाय

Plagiarism से बचने का एक मात्र उपाय यह है कि आप जहां से भी कोई भी सामग्री या विचार ले रहे हैं तो उस स्रोत का जिक्र अपने शोध कार्य में और संदर्भ ग्रंन्‍थ (reference list) सूची में आवश्‍य करें।

साहित्यिक चोरी के बुरे नतीजे।। Consequences of Plagiarism

साहित्यिक चोरी के दुरगामी बुरे परिणाम और इसके प्रभाव क्षेत्र को देखते हुए इसे रोकने के लिए अनेक प्रकार की कोशिशें की गई हैं। इस प्रकार के अनैतिक कार्य शोध नैतिकता और अच्‍छे अच्‍छे खोज से समाज को और भी बेहतर बनाने के रास्‍ते में कांटा का काम करता है। इससे निबटने के लिए अब कई प्रकार की सॉफ्टवेयर को विकसित कर लिया गया है। जो बहुत ही कारगर हैं ऐसे चोरी को पकड़ने में।

बुरे नतीजे

शैक्षणिक संस्‍थान से संबंधित।। Educational Institutions

अगर आप किसी विद्यालय के छात्र हैं या किसी विश्‍वविद्यालय में शोध कार्य कर रहे हैं और Plagiarism का दोषी पाये जाते हैं तो कई प्रकार के दंड का विधान है इन संस्‍थानों में। आपको आर्थिक जुर्माना भरना पड़ सकता है या आपके अंक को कम किया जा सकता है या आपको आगे की कक्षाओं में जाने से रोका जा सकता है। कभी-कभी तो कुछ दिन के लिए शैक्षणिक संस्‍थान से निकाला जा सकता है। अगर यह चोरी बहुत ही बुरे परिणाम को पैदा करने वाली है तो आपको शिक्षण संस्‍थान से या शोध संस्‍थान से हमेशा के लिए निकाला जा सकता है।

ऐसे कार्य के लिए सजा देते समय संस्‍थाएं आपके Plagiarism के दुष्‍प्रभाव की व्‍यापकता को जांचती हैं। जितना बड़ी चोरी उतनी बड़ी सजा।  

शोध पत्रिका से संबंधित

अगर आपने शोध पत्र छपवाने के लिए Plagiarism किया है तो आपके शोध पत्र को पत्रिका से निकाला जा सकता है। उसके उपर शोध पत्रिकाएं एक सूचना लगा देगी कि इस शोध पत्र को Plagiarism के कारण शोध पत्रिका वापस लेती है। इसमें प्रकाशित आंकडे विश्‍वसनीय नहीं है।

शोध पत्रिकाएं ऐसा करके अपनी यश की क्षति को कम करती हैं। अगर ऐसा नहीं करें तो उनके मान एवं यश को बहुत ही हानि होता है। ऐसा करने से एक प्रकार से शोध विद्वान को सजा भी मिल जाती है। उसका नाम अब विश्‍वसनीय शोधकर्ता में नहीं गिना जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इस प्रकार की अपयश से आप आगे की शोध यात्रा जारी नहीं रख पाते हैं। आपको कोई दूसरा क्षेत्र चुनना पड़ता है। इतना दिन तक जो भी मेहनत किया वह सब बेकार हो जाता है।

व्‍यक्तिगत मान-हानि Professional Reputations

भारतीय समाज में कहा जाता है कि प्राण-हानि से मान-हानि बहुत ही ज्‍यादा कष्‍टकारी होता है। किसी को संस्‍थान से Plagiarism के कारण निकाल दिया जाए तो वह शिक्षित समाज में सम्‍मान से जीवन नहीं जी सकता। उसके विद्वता पर अब प्रश्‍न चिन्‍ह लग जाता है। एक ऐसा धब्‍बा लग जाता है जिसे कभी धोया नहीं जा सकता।

कानूनी चक्‍कर

कभी कभी सम्‍मानित प्रकाशक न्‍यायालय में चले जाते हैं। Plagiarism के आधार पर आर्थिक दंड के साथ सार्वजनिक रूप से मांफी भी मांगनी पडती है। इस प्रकार का अपयश से शोधार्थी का पुरा शैक्षणिक जींदगी समाप्‍त हो सकती है।

अत: इस प्रकार की गंभीर नैतिक अपराध नहीं करनी चाहिए। शिक्षा के क्षेत्र में मेहनत करके आगे बढ़ना चाहिए। जहां से विचार या लिखित अंश या तस्‍वीर ले रहे हैं उस स्रोत का संदर्भ अपनी रचना में जरुर देना चाहिए।  

साहित्यिक चोरी से कैसे बचें? How to Avoid Plagiarism

सही तरह से संदर्भ देना Proper Citations

अगर हम जिस भी विद्वान से कुछ विचार आदि लेते हैं तो उस विद्वान की उस कृति का रचना व संदर्भ ग्रन्‍थ सूची में आवश्‍य उल्‍लेख करें। संदर्भ ग्रन्‍थ की सूची तैयार करने के लिए बहुत से पद्धतियां हैं जैसे कि APA, MLA, Chicago। इन्‍हें अच्‍छी तरह से समझ कर उनके दिशा निर्देशों का पालन करें।

कथन चिन्‍ह का प्रयोग

जब भी किसी विद्वान की रचना से हु-ब-हु एक वाक्‍य या कुछ पंक्तियां लेते हैं तो उसे डबल इनवर्टेड कॉमा (“   ”) में ही लिखें। ऐसा करने से यह सुस्‍पष्‍ट हो जाएगा कि आप हु-ब-हु उतारे हैं।  

भावार्थ लिखें

शोधार्थी को हु-ब-हु तभी उतारना चाहिए जब कोई परिभाषा की पंक्ति हो या शोधकर्ता ने कुछ बहुत ही महत्‍वपूर्ण कहा हो। अन्‍य स्‍थानों पर भावार्थ को अपने शब्‍दों में लिखें। सम्‍यक रूप से संदर्भ को संदर्भ सूची में अंकित करें।

संदर्भ ग्रन्‍थ सूची

शोध लेख या पुस्‍तक के अंत में एक संदर्भ ग्रन्‍थ सूची आवश्‍य लगाएं। इसमें उन सभी पुस्‍तकों, उसके लेखक व प्रकाशन तिथि का सही-सही वर्णन करें। टंकण व अन्‍य त्रुटि के कारण भी Plagiarism का मामला बन सकता है।

Plagiarism जांच करते रहें

अब तो अनेकों ऑनलाइन वेबसाइट हैं जहां पर आप अपनी शोध कार्य में Plagiarism को जांच सकते हैं। तो कहीं पर छपने के लिए भेजने से पहले आप स्‍वयं ही अपने पुस्‍तक या शोध लेख की Plagiarism की जांच कर लें।

इस प्रकार से हम समझ गए हैं कि Plagiarism से शोध को कई प्रकार से हानि होती है । और यह न तो समाज के हित में है और न ही देश के हित में। यह शोधकर्ता के लिए सबसे खतरनाक रास्‍ता है। अत: इससे बचें और शैक्षणिक जगत के कठीन रास्‍ते पर आनन्‍द के साथ धीरे धीरे आगे बढ़ें।

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