लेखन कौशल का महत्‍व।। Importance of Writing skills

अगर आप एक शोध छात्र हैं और शोध में लेखन कौशल के महत्‍व से अनजान हैं, अच्‍छे पत्रिका में प्रकाशन नहीं करा पा रहे हैं, invited lecture का मौका नहीं मिल रहा है, promotion नहीं हो रहा है या आपको अपने department से बाहर कोई जानता नहीं है तो यह blog सिर्फ आपके लिए है।

इस blog में मैं लेखन कला के महत्‍व और उसके बहुआयामी लाभ के बारे में बताउंगा। जिसे जानने के बाद आप भी लेखन कला को कम महत्‍व देने की भूल करना भूल जाएंगे।

एक शोधार्थी का कार्य सिर्फ शोध करना नहीं होता है। और न ही आंकडे जमा करके उससे  निष्‍कर्ष निकालने भर से शोधार्थी के कार्य का इतिश्री हो जाता है।

जब तक शोध कार्य का प्रकाशन न हो जाए और वह प्रकाशित लेख या शोध प्रपत्र शोध जगत में वांछित पाठकों तक न पहुंच जाए तब तक शोध कार्य को अपूर्ण ही माना जाता है।

शोध तो किये परन्‍तु उसका प्रकाशन नहीं किये तो यह वैसे ही हुआ कि जंगल में मोर नाचा किसने देखा।

शोध के परिणाम को पाठक पढ़े और उसे अच्‍छी तरह से समझ लें इसके लिए आपको लेखन कला में दक्ष होना चाहिए। प्रभावीहीन प्रकाशन से आपका सारा परिश्रम का फल अधुरा है।

तो आइए प्रभावी लेखन कौशल के महत्‍व और लाभ को विस्‍तार से जानते हैं।

लेखन कौशल का लाभ।। Benefits of Writing Skills

लेखल कौशल के कई लाभ हैं। उनमें कुछ का यहां जिक्र कर रहा हूं।


प्रभावशाली संवाद में।। Effective Communication

एक शोधार्थी शोध के माध्‍यम से एक ही विषय को बहुत ही गंभीरता से अध्‍ययन करता है। और कुछ नवीन जानकारी का पता लगाता है। कुछ नये सिद्धांत का भी विकास करता है। शोध से किसी तथ्‍य की नयी व्‍याख्‍या प्रस्‍तुत किया जाता है। इस प्रकार की सभी नवीन जानकारी को अगर प्रभावी ढ़ग से प्रस्‍तुत नहीं किया गया तो उसका असर और लाभ शिक्षा जगत को नहीं उतना नहीं मिल पाएगा जितता की अपेक्षा की जाती है। ये नये विचार जटिल होते हैं और इसमें बहुत ही ज्‍यादा टेक्निकल शब्‍दावली (technical terms) होते हैं जिन्‍हें साधारण लोग नहीं समझ पाते हैं। इसीलिए उमदा लेखन कौशल की जरुरत होता है जिससे कि शोध निष्‍कर्ष को प्रभावी ढ़ग से विद्वानों व साधारण पाठक के बीच पहुचाया जा सके।

प्रकाशन में।। Publication

शोध  प्रपत्र के प्रकाशन का महत्‍व शोध जगत में या उच्‍च शिक्षा में कितना है इस बात पर ज्‍यादा बोलने की जरुरत नहीं है। परन्‍तु शोध प्रपत्र के प्रकाशन में लेखन कौशल का क्‍या महत्‍व है इस बात से बहुत लोग अनजान हैं। शोध विद्वानों का मानना है कि अगर आप बहुत ही अच्‍छे से आकड़े का संकलन किया और उसका विश्‍लेषण में भी बहुत मेहनत से किया और परिणाम भी विश्‍वसनीय है क्‍योंकि आप शोध प्रविधि का प्रयोग किये हैं। हर चरण में। फिर भी आपका शोध प्रपत्र एक अच्‍छे इंपैक्‍ट फैक्‍टर (impact factor) वाले शोध पत्रिका (research journals) में हो जाए ऐसा नहीं है। हां, अच्‍छे परिणाम के साथ अच्‍छी लेखन शैली का प्रयोग कर उसको प्रस्‍तुत किया गया है तो उसके प्रकाशन की संभावना बहुत अधिक हो जाती है।

प्रचार प्रसार में।। Dissemination

सुस्‍पष्‍ट तरीके से लिखा गया लेख को पढ़ने और समझने में सुविधा होती है। क्‍योंकि भाषा सरल होती है, शब्‍द चयन और वाक्‍य संरचना में पाठक के बौद्धिक स्‍तर का ख्‍याल रखा जाता है। अत: अधिक से अधिक पाठक तक पहुंचना आसान हो जाता है।

प्रभावी प्रस्‍तुतीकरण में।।  Effective Presentation

लेखन कला में कौशल शोधार्थी गंभीर से गंभीर विचार को भी बहुत ही प्रभावी ढ़ग से रखने में सफल होता है। इससे शोध के विभिन्‍न भाग जैसे कि शोध प्रश्‍न, शोध उद्देश्‍य और निष्‍कर्ष आदि पाठक के समझ में सुगमता से आ जाता है। परिणाम वांछित पाठकों तक पहुच जाने से शोध के उद्देश्‍य की पूर्ति भी हो जाती है। शोध परिणाम को पाठक कैसे समझ रहें हैं इसका संबंध लेखन कौशल से है। सही-सही समझने में अच्‍छी लेखन शैली का बहुत बडी भूमिका होती है।

        शिक्षा या शोध में मौखिक प्रस्‍तुति ही अधिकांश जगहों पर देनी होती है। जिनका लेखन शैली अच्‍छी है उनका मौखिक प्रस्‍तुति भी अच्‍छी होती है क्‍योंकि वे लेखन कार्य में शब्‍द चयन, वाक्‍य संरचना, विषय की प्रभावी प्रस्‍तुति आदि पर विशेष कार्य करते हैं एवं बल देते हैं। जिससे उनको कार्यशाला (workshop), संगोष्‍ठी (conference)और अभिभाषण (lecture) आदि में मौखिक प्रस्‍तुतिकरण (oral presentation) में बहुत लाभ मिलता है।

जैसे लेखन कौशल के कारण लेखन कार्य में अपनी विचार को स्‍पष्‍टता, रसलता और तरतम्‍यता के साथ रखते हैं उसी स्‍पष्‍टता, रसलता और तरतम्‍यता के साथ वे मौखिक प्रस्‍तुति भी देते हैं।

स्‍पष्‍टता में।। Clarity

शोध के क्षेत्र में जब भी कोई नई सिद्धांत आती है या कोई नयी विधि की खोज होती है या कोई नई व्‍याख्‍या की जाती है तो इसके दौरान कई नयी शब्‍दों का भी प्रयोग चलन में आता है। गंभीर विषय के परिणाम को भी सुस्‍पष्‍ट लेखन शैली के द्वारा स्‍पष्‍टता से व्‍यक्‍त किया जाता है जिससे पाठक आसानी से समझ लेते हैं। लेखन में सुस्‍पष्‍टता और भाषा में सरलता से शोध निष्‍कर्ष उन लोगों को भी समझ में आ जाती है जो विषय के विशेषज्ञ नहीं हैं। वे भी शोध के बारे में चर्चा करने लगते हैं जिससे विचार विमर्श शुरु हो जाता है। यह शोध के विकास की दृष्टि से बहुत महत्‍वपूर्ण है।

सहकर्मी समीक्षा में ।। Peer Review

 शोध में अन्‍य विद्वानों के राय (feedback), विचार (opinion), आलोचनाओं (criticism) और सुझाव (suggestions) के महत्‍व को बताया नहीं जा सकता है। लेख प्रभावी ढ़ग से प्रस्‍तुत किया गया हो और भाषा भी सरल हो तो अन्‍य लोग उसे सरलता से समझते हैं। समीक्षक विद्वान भी वहीं बात समझते हैं जो शोधार्थी बताना चाहता है। इससे वे सुझाव और आलोचना सही दिशा में देते हैं। जब प्रकाशन के लिए भेजा जाता है तो स्‍पष्‍ट लिखे लेख में विद्वान यह लिखकर नहीं भेजता कि इस पाराग्राफ का अर्थ स्‍पष्‍ट नहीं हो रहा है। इस पंक्ति को पुन: लिखने की जरुरत है। यह शब्‍द यहां उचीत नहीं है इसके बदले कोई दुसरा शब्‍द का प्रयोग करें। आपकी लेख बहुत ही जटिल है। साधारण पाठक के समझ से परे है आदि आदि।

बहुलेखक वाले शोध कार्य में।। Multi Authored Research

जब शोध लेख उसी शोधार्थी के द्वारा लिखा जाता है जो शोध किया है तो वह अपनी शोध के सभी चरण का वर्णन आसानी से कर लेता है। उसे ज्‍यादा कठिनाई नहीं होती है। कार्य करने में स्‍वयं सम्‍मीलित होने के कारण लिखना आसान हो जाता है क्‍योंकि वह अकेला होता है यह तय करने वाला कि सभी चीजें उसी के अनुसार लिखी गई हैं या नहीं। वो जिस तरह अपनी शोध को प्रस्‍तुत करना चाहता है उसी प्रकार से प्रस्‍तुत हुआ है या नहीं। जहां भी वह असंतुष्‍ट होता है पुन: लिखता है। बार बार सुधारता है।

        परन्‍तु जब शोध में एक से अधिक शोधार्थी हों और शोध कार्य में एकरूपता, स्‍पष्‍टता और तारतम्‍यता भी बनी रहे, उस स्थिति में लेखन कला की कुशलता की आवश्‍यकता और बढ़ जाती है। यहां एक ऐसा लेखन कला में कौशल लेखक चाहिए जो उन दो या तीन या चार लेखकों के विचारों को वैसे ही प्रस्‍तुत करे जैसा वे चाहते हैं।

चिंतन के विकास में।। Critical Thinking

शोध परिणाम को प्रस्‍तुत करते समय इस बात का ध्‍यान रखा जाता है कि सभी तथ्‍य, आकडे और तर्क में आपसी तालमेल हो और वे मिलकर शोध परिणाम को प्रभावी ढ़ग से प्रस्‍तुत करें। इसके लिए जब शोधार्थी एक शब्‍द भी लिखता है तो स्‍पष्‍टता आदि सभी घटकों को ध्‍यान में रखकर उस एक शब्‍द का चयन करता है। इसके लिए शोधार्थी को बहुत सोच विचार करना पड़ता है। इससे उसका चिंतन शक्ति का भी विकास होता है।

पेशागत लाभ में।। Professional Growth

अगर आपके पास लेखन कौशल है और आप अपने शोध परिणाम को ऐसे प्रस्‍तुत करते हैं कि उसे वह भी सरलता से समझ ले जो विषय का विद्वान नहीं है तो आपकी यश बढ़ता है। आपके विषय क्षेत्र के लोग आपको विशेष सम्‍मान देते हैं। इसका लाभ कई रूप में मिलता है। वे आपको संगोष्ठी (conference) में बुलाते हैं। वे आपको वकतव्‍य देने के लिए आमंत्रित (invited lectures) करते हैं। विचार-विमर्श (debate-discussion) में बुलाते हैं। मुख्‍य वक्‍ता (chief speaker) के रूप में बुलाते हैं। कई बार तो वे लेखन सहायक (writing consultant) की सेवा के लिए भी आपको याद करते हैं।

शोध क्षेत्र में अधिक संभावनाएं ।। Career Advancement

वैसे शोधार्थी या विद्वान जिनकी लेखन शैली बहुत अच्‍छी है। अनुसंधान प्रस्‍ताव (research proposal) में सभी चीजें स्‍पष्‍टता के साथ लिखते हैं। उनकी शोध ग्रांट (research grant) की स्‍वीकृति की संभावना प्रबल होती है। किसी पद को पाने में भी कुशल लेखन शैली सहायक होती है। इसके साथ चाहे फंडिंग (funding) लेनी हो, अपनी कार्यकाल (tenure) को बढ़वाना हो या कोई पदोन्‍नति (promotion) पानी हो तो इन सभी प्रकार के शैक्षणिक विकास (academic development)  में लेखन कौशल (writing skills) की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता है। और न ही नजरअंदाज किया जा सकता है।

इस प्रकार, लेखन कौशल का शिक्षा और शोध के क्षेत्र में बहुआयामी महत्‍व है। इससे यश-लाभ, पद-लाभ, आमंत्रण-लाभ और प्रकाशन-लाभ के साथ अन्‍य कई लाभ हैं।

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